तीर्थ स्थल विकास कार्य

यह तीर्थ स्थल लगभग 50 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें से 24 बीघा जमीन मंदिर की है। स्व. महाराज श्री राम गिरि जी के नेतृत्व में ही स्थानीय चौखला (आस-पास के गांव) के सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया। सन 1988-89 में स्थानीय चौखला ने मिलकर प्रबंधकारिणी कमेठी श्री शनिमहाराज(आली) का गठन कर इसका पंजीयन करवाया तब से तीर्थ स्थल का विकास एवं रख-रखाव इस कमेटी द्वारा किया जाता है जो आज तक निरंतर जारी है।
मंदिर कमेटी ने मंदिर के पास ही लगभग 50 लाख रूपये की लागत से नवगृह मंदिर निर्माण करवाया।

तेल का चढ़ावा अधिक आने पर मंदिर के उत्तर दिशा में 64 फ़ीट लम्बा 24 फ़ीट चौड़ा तथा 14 फ़ीट गहराई का पक्का तेल कुंड बनाया गया। इस कुंड के भर जाने पर लगभग 8 वर्ष पूर्व इस कुंड के पास ही इतने ही लम्बाई चौड़ाई तथा 18 फ़ीट गहराई का पक्का तेल का कुंड बनाया गया था जो तीन वर्ष पूर्व भर चुका है। जिस पर मंदिर कमेटी द्वारा तीसरे कुंड का निर्माण करवाया गया। इस नए कुंड की लम्बाई 84 फ़ीट चौड़ाई 50 फ़ीट एवं गहराई 29 फ़ीट है।

कमेटी के द्वारा मंदिर की अपनी एक धर्मशाला का निर्माण करवाया गया जिसमे 10 कमरे, सभागार और रसोई घर उपलब्ध है।
18 कमरे युक्त एक वातानुकूलित विश्रांति गृह भी बनाया गया है। इस विश्रांति गृह में 160 फ़ीट लम्बा और 100 फ़ीट चौड़ा बगीचा भी बनाया गया है।


यात्रियों की सुविधा के लिए 120 फ़ीट लम्बी 40 फ़ीट चौड़ी भोजनशाला का निर्माण करवाया गया। रंग मंच, मंदिर के बाहर 160 फ़ीट लम्बाई की छाया, बस स्टेण्ड पर बंसी पहाड़पुर के पत्थरो से शानदार स्वागत द्वार बनवाया गया।
मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था हेतु CCTV कैमरा और सुरक्षा गॉर्ड लगवाए गए है।
शनि देव पे तेल चढाने के लिए मंदिर परिसर में पाइप और कीमा की व्यवस्था करवाई गयी और भी कई बड़ी विकास योजनाओ पर विचार विमर्श जारी है ।